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जैनागम स्तोक संग्रह १३ क्षेत्र से पन्द्रहवाँ रुचक द्वीप तक जाने देखे व काल से पृथक् वर्ष की बात जाने देखे।
१४ क्षेत्र से संख्याता द्वीप समुद्र की बात जाने देखे व काल से संख्याता काल की बात जाने देखे ।
१५ क्षेत्र से संख्याता तथा असंख्याता द्वीप समुद्र की बात जाने देखे व काल से असंख्याता काल की बात जाने देखे। इस प्रकार उर्ध्व लोक, अधो लोक तिर्यक् लोक इन तीन लोकों मे बढते वर्धमान परिणाम से अलोक में असंख्याता लोक प्रमाण खण्ड जानने की शक्ति प्रकट होवे।
४ हीयमानक अवधिज्ञान अप्रशस्त लेश्या के परिणाम के कारण अशुभ ध्यान से व अविशुद्ध चारित्र परिणाम से ( चारित्र की मलिनता से ) अवधिज्ञान की हानि होती है व कुछ कुछ घटता जाता है। इसे हीयमानक अवधि ज्ञान कहते है।
५ प्रतिपाति अवधि ज्ञान जो अवधिज्ञान प्राप्त हो गया है वह एक समय ही नष्ट हो जाता है । वह जघन्य १ आंगुल के असंख्यातवे भाग, २ आंगुल के संख्यातवें भाग, ३ वालाग्र ४ पृथक् वालाग्र, ५ लिम्ब, ६ पृथक् लिम्ब, ७ यूका (जू), ८ पृथक् जू, ६ जव, १० पृथक् जव, ११ आंगुल, १२ पृथक्
आंगुल, १३ पॉव, १४ पृथक् पांव, १५ वेहेत, १६ पृथक् वेहेत, १७ हाथ, १८ पृथक् हाथ, १६ कुक्षि ( दो हाथ ), २० पृथक् कुक्षि, २१ धनुष्य, २२ पृथक् धनुष्य, २३ गाउ, २४ पृथक् गाउ, २५ योजन, २६ पृथक योजन, २७ सौ योजन, २८ पृथक् सौ योजन, २६ सहस्र योजन, ३० पृथक् सहस्र योजन, ३१ लक्ष योजन, ३२ पृथक् लक्ष योजन, ३३ करोड योजन, ३४ पृथक करोड योजन, ३५ करोडाकरोड़ योजन,