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________________ २३२ जैनागम स्तोक संग्रह होवे । इस प्रकार क्षेत्र सूक्ष्म है। इससे द्रव्य अनन्त गुणा सूक्ष्म है। एक अंगुल प्रमाण क्षेत्र में असंख्यात श्रोणियां है । अगुल प्रमाण लम्बी व एक प्रदेश प्रमाण जाडी में असंख्यात आकाश प्रदेश है । एक एक आकाश प्रदेश ऊपर अनन्त परमाणु तथा द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी, अनन्त प्रदेशी यावत् स्कन्ध प्रमुख द्रव्य है। इन द्रव्यो में से समय समय पर एक एक द्रव्य का अपहरण करने में अनन्त कालचक्र लग जाते है तो भी द्रव्य खतम नही होते । द्रव्य से भाव अनन्त गुणा सूक्ष्म है। पूर्वोक्त श्रेणी में जो द्रव्य कहे है, उनमें से एक एक द्रव्य में अनन्त पर्यव (भाव) है। एक परमाणु में एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस, दो स्पर्श है । जिनमें एक वर्ण में अनन्त पर्याय है। यह एक गुण काला, द्विगुण काला, त्रिगुण काला यावत् अनन्त गुण काला है । इस प्रकार पांचों बोल में अनन्त पर्याय है। द्विप्रदेशी स्कन्ध में २ वर्ण, २ गन्ध, २ रस, ४ स्पर्श है । इन दश भेदों में भी पूर्वोक्त रीति से अनन्त पर्याय है। इस प्रकार सर्व द्रव्य में पर्याय की भावना करना एवं सर्व द्रव्य के पर्याय इकट्ठ करके समय समय एक पर्याय का अपहरण करने में अनन्त कालचक्र (उत्सर्पिणी अवसर्पिणी) बीत जाने पर परमाणु द्रव्य के पर्याय पूरे होते है एवं द्विप्रदेषी स्कन्धो के पर्याय, त्रिप्रदेशी स्कन्धो के पर्याय यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के पर्याय का अपहरण करने मे अनन्त कालचक्र लग जाते है तो भी खूटे नही । इस प्रकार द्रव्य से भाव सूक्ष्म होते है । काल को चने की ओपमा, क्षेत्र को ज्वार की ओपमा, द्रव्य को तिल की ओपमा और भाव को खसखस की ओपमा दी गई है। पूर्व चार प्रकार की वृद्धि की जो रीति कही गई है, उनमें से क्षेत्र से व काल से किस प्रकार वर्धमान होता है उसका वर्णन : १ क्षेत्र से अंगुल का असंख्यातवें भाग जाने देखे व काल से आवलिका के असंख्यातवे भाग की बात गत काल व भविष्य काल की जाने देखे।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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