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पाच ज्ञान का विवेचन
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(३) वर्द्ध मानक अवधि ज्ञान - प्रशस्त लेश्या के अध्यवसाय के कारण व विशुद्ध चारित्र के परिणाम द्वारा सर्व प्रकार अवधि ० की वृद्धि होवे उसे वर्धमानक अवधि ० कहते है । जघन्य से सूक्ष्म निगोदिया जीव तीन समय उत्पन्न होने में शरीर की जो अवगाहना बांधी होवे उतना ही क्षेत्र जाने उत्कृष्ट सर्व अग्नि का जीव, सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त, एवं चार जाति के जीव । इनमें वे भी जिस समय में उत्कृष्ट होवे उन अग्नि के जीवो को एकेक आकाश प्रदेश मे अन्तर रहित रखने से जितने अलोक मे लोक के बराबर असंख्यात खण्ड (भाग विकल्प ) भराय उतना क्षेत्र सर्व दिशा व विदिशाओ (चारो ओर) से देखे । अवधि० रूपी पदार्थ देखे । मध्यम अनेक भेद है | वृद्धि चार प्रकार से होवे
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१ द्रव्य से, २ क्ष ेत्र से, ३ काल से, ४ भाव से ।
१ काल से ज्ञान की वृद्धि होवे तब तीन बोल का ज्ञान बढे ।
२ क्षेत्र से ज्ञान बढे तब काल की भजना व द्रव्यभाव का ज्ञान बढे ।
३ द्रव्य से ज्ञान बढे तब काल का तथा क्षेत्र की भजना व भाव को वृद्धि |
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४ भाव से ज्ञान बढे तो शेष तीन वोल की भजना इसका विस्तार पूर्वक वर्णन - सर्व वस्तुओ में काल का ज्ञान सूक्ष्म है । जैसे चौथे आरे में जन्मा हुआ निरोगी बलिष्ठ शरीर व वज्रऋषभनाराच संहनन वाला पुरुष तीक्ष्ण सूई लेकर ४९ पान की बीडी वीधे, बीधते समय एक पान से दूसरे पान में सूई को जाने मे असख्याता समय लग जाता है । काल ऐसा सूक्ष्म होता है । इससे क्षेत्र असख्यात गुण सूक्ष्म है । जैसे एक अगुल जितने क्ष ेत्र मे असख्यात श्रेणिये है । एक एक समय में एक एक आकाश प्रदेश का यदि अपहरण होवे तो इतने मे असख्यात कालचक्र बीत जाते है तो भी एक श्रेणी परी (पूर्ण) न