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________________ २३० जैनागम स्तोक सग्रह (१) अनुगामिक-जहां जावे वहां साथ आवे (रहे) यह दो प्रकार का-१ अन्तगत, २ मध्यगत । अन्तःगत अवधिज्ञान के ३ भेद-१ पुरतः अन्त गत (पुरओ अन्तगत) शरीर के आगे के भाग के क्षेत्र में जाने व देखे । २ मार्गतः अन्तः गत (मग्गओ अन्तगत) शरीर के पृष्ट भाग के क्षेत्र में जाने व देखे । ___३ पार्वतः अन्तःगत-शरीर के दो पार्श्व भाग के क्षेत्र में जाने व देखे। ___ अन्तःगत अविधज्ञान पर दृष्टान्त :-जैसे कोई पुरुष दीप प्रमुख अग्नि का भाजन व मणि प्रमुख हाथ में लेकर आगे करता हुआ चले तो आगे देखे, पीछे रख कर चले तो पीछे देखे और दोनो तरफ रख कर चले तो दोनों तरफ देखे व जिस तरफ रक्खे उधर देखे दूसरी तरफ नही, ऐसा अवधिज्ञानका जानना । जिस तरफ देखे जाने उस तरफ सख्याता, असंख्याता योजन तक जाने देखे। ___२ मध्य गत-यह सर्व दिशा व विदिशाओं में (चारो तरफ) संख्याता योजन तक जाने देखे । पूर्वोक्त दीप प्रमुख भाजन मस्तक पर रख कर चलने से जैसे चारों ओर दिखाई दे उसी प्रकार इस ज्ञान से भी चारों ओर देखे जाने । ___ (२) अनानुगामिक अवधि ज्ञान-जिस स्थान पर अवधि ज्ञान उत्पन्न हुआ हो, उसी स्थान पर रहकर जाने व देखे, अन्यत्र यदि वह पुरुष चला जावे तो नही देखे जाने। यह चारो दिशाओ में संख्यात असंख्यात योजन संलग्न तथा असंलग्न रह कर जाने देखे, जैसे किसी पुरुष ने दीप प्रमुख अग्नि का भाजन व मणि, प्रमुख किसी स्थानपर रक्खा होवे तो केवल उसी स्थान के प्रति चारों तरफ देखे परन्तु अन्यत्र न देखे उसी प्रकार अनानुगामिक अवधि जानना ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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