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पाँच ज्ञान का विवेचन
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५ स्पर्शेन्दिय लब्धि अक्षर श्रुतशीत, ऊष्ण आदि का स्पर्श होने से जाने कि यह शीत व ऊष्ण है । अतः इस अक्षर का ज्ञान स्पशेंद्रिय से हुआ । इसलिये इसे स्पर्शे • लब्धि अक्षर श्रुत कहते है ।
६ नोइन्द्रिय लब्धि अक्षर श्रुत - मन में चिन्ता व विचार करते हुए स्मरण हुआ कि मैने अमुक सोचा व विचारा अत इस स्मरण के अक्षर का ज्ञान मन से हुआ, इसलिए इसे नोइन्द्रिय लब्धि अक्षर श्रत कहते है ।
२ अनक्षर श्रुत . - इसके अनेक भेद है । अक्षर का उच्चारण किये बिना शब्द, छीक, उधरस, उछ्वास, नि श्वास, बगासी, नाक निषीक तथा नगारे प्रमुख का शब्द अनक्षरी वाणी द्वारा जान लेना इसे अक्षर श्रुत कहते है ।
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३ सज्ञी श्रुत . - इसके तीन भेद १ सज्ञी कालिकोपदेश, २ सज्ञी हेतुपदेश, ३ सज्ञी दृष्टिवादोपदेश |
१ सज्ञी कालिकोपदेश : - श्रुत सुनकर १ विचारना, २ निश्चय करना, ३ समुच्चय अर्थ की गवेषणा करना, ४ विशेष अर्थ की गवेषणा करना, ५ सोचना ( चिता करना ), ६ निश्चय करके पुन विचार करना ये ६ बोल सज्ञी जीव के होते है । इसलिये इसे सज्ञी कालिकोपदेश श्रुत कहते है ।
२ सज्ञी हेतूपदेश - जो सज्ञी धारण कर रक्खे ।
३ सज्ञी हप्ट वादोपदेश - जो क्षयोपशम भाव से सुने । अर्थात् शास्त्र को हेतु सहित, द्रव्य अर्थ सहित, कारण युक्ति सहित, उपयोग सहित, पूर्वापर विचार सहित जो पढे, पढावे, सुने उसे सज्ञी श्रुत कहते है ।
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असंज्ञी श्रुत के तीन भेद - १ असज्ञी कालिकोपदेश २ असज्ञी हेतूपदेश, ३ असज्ञी दृष्टिवादोपदेश |
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