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________________ २२४ जैनागम स्तोक संग्रह १ सज्ञा अक्षर श्रुत-अक्षर के आकार के ज्ञान को कहते है। जैसे क, ख, ग प्रमुख सर्व अक्षर की सज्ञा का ज्ञान, क अक्षर के आकार को देख कर कहे कि यह ख नही, ग नही इस तरह से सर्व अक्षरो का ना कह कर कहे कि यह तो क ही है। एवं संस्कृत, प्राकृत, गोडी, फारिसी, द्राविडी, हिन्दी आदि के अनेक प्रकार की लिपियो मे अनेक प्रकार के अक्षरो का आकार है, इनका जो ज्ञान होवे उसे सज्ञाअक्षर श्रुत ज्ञान कहते है। २ व्यजन अक्षर श्रु त-ह्रस्व, दीर्घ, काना; मात्रा, अनुस्वार प्रमुख की सयोजना करके बोलना व्यंजनाक्षर श्रु त । ३ लब्धिअक्षरथ त-इन्द्रियार्थ के जानपने की लब्धि अक्षर श्रुत इसके ६ भेद १ श्रोत्रेन्द्रिय लब्धि अक्षर श्रुत-कान से भेरी प्रमुख का शब्द सुनकर कहे कि यह मेरी प्रमुख का शब्द है अतः भेरी प्रमुख अक्षर का ज्ञान श्रोत्रेन्द्रिय लब्धि से हुवा इसलिये इसे श्रोत्रन्द्रिय लब्धि श्रु त कहते है। २ चक्षुइन्द्रिय अक्षर श्रुत-आँख से आम प्रमुख का रूप देख कर कहे कि यह आम प्रमुख का रूप है अत: आम प्रमुख अक्षर का ३. न चक्षु इन्द्रिय लब्धि से हुवा इस लिये इसे चक्षुइन्द्रिय लब्धि श्रु त कहते है। __३ घ्राणेन्द्रिय लब्धि अक्षर श्रुत-नासिका से केतकी प्रमुख की सुगन्ध सू घ कर कहे कि यह केतकी प्रमुख की सुगन्ध है अत: केतकी प्रमुख अक्षर का ज्ञान घ्राणन्द्रिय लब्धि श्रु त से हुवा इस लिये इसे घ्राणेन्द्रिय लब्धि श्रु त कहते है। ४ रसनेन्द्रिय लब्धि अक्षर श्रुत :-जिह्वा से शक्कर प्रमुख का स्वाद जान कर कहे कि यह शक्कर प्रमुख का स्वाद है, अतः इस अक्षर का ज्ञान रसनेन्द्रिय से हुआ इसलिये इसे लब्धि अक्षर श्रुत कहते है।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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