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________________ पाच ज्ञान का विवेचन २२३ समय तक । प्रवेश किये हुवे पुद्गलो को अन्त समय जाने कि मुझे कोई बुला रहा है । इहा का काल, अन्तर्मुहूर्त | विचार हुवा करे कि जो मुझे बुला रहा है वह यह है अथवा वह । अवाय का काल - अन्तर्मुहूर्त - निश्चय करने का कि मुझे अमुक पुरुष ही बुला रहा है । शब्द के ऊपर से निश्चय करे । धारणा का काल सख्यात वर्ष अथवा असख्यात वर्ष तक धार राखे कि अमुक समय मैने जो शब्द सुना वह इस प्रकार है । अव० के दश भेद, इहा के ६ भेद, अवाय के ६ भेद, धारणा के ६ भेद एव सर्व मिलकर श्रुत निश्रीत मति ज्ञान के २८ भेद हुवे । मति ज्ञान समुच्चय चार प्रकार का -१ द्रव्य से २ क्षेत्र से ३ काल से ४ भाव से १ द्रव्य से मति ज्ञानी सामान्य से उपदेश द्वारा सर्व द्रव्य जाने परन्तु देखे नही । २ क्ष ेत्र से मति ज्ञानी सामान्य से उपदेश के द्वारा सर्व क्षेत्र की बात जाने परन्तु देखे नही । ३ काल से मतिज्ञानी सामान्य से उपदेश के द्वारा सर्व काल की बात जाने परन्तु देखे नही । ४ भाव से सामान्य से उपदेश के द्वारा सर्व भाव की बात जाने परन्तु देखे नही । नही देखने का कारण यह है कि मति ज्ञान को दर्शन नही है | भगवती सूत्र मे पासइ पाठ है वह भी श्रद्धा के विषय मे है परन्तु देखे ऐसा नही । श्रुत ( सूत्र ) ज्ञान का वर्णन : श्रुत ज्ञान के १४ भेद - १ अक्षर श्रुत २ अनक्षरश्रुत ३ ज्ञ श्रुत ४ असज्ञी श्रुत ५ सम्यक् श्रुत ६ मिथ्या श्रुत ७ सादिक श्रुत ७ अनादिक श्रुत सपर्यवसित श्रुत १० अपर्यवसित श्रुत ११ गमिक श्रुत १२ अगमिक श्रुत १३ अगप्रविष्ट श्रुत १४ अनग प्रविष्ट श्रुत | १ अक्षर श्रुत - इसके तीन भेद - १ सज्ञा अक्षर २ व्यजन अक्षर ३ लब्धि अक्षर |
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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