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________________ २२२ जैनागम स्तोक संग्रह अर्थाव०, ४ रसनेन्द्रिय अर्थाव०, ५ स्पर्शेन्द्रिय अर्थाव०, ६ नोइन्द्रिय (मन) अर्थाव। श्रोत्रन्द्रिय अर्थावo-जो कान के द्वारा शब्द का अर्थ ग्रहण करे। चक्षुन्द्रिय अर्थाव०-जो चक्षु के द्वारा रूप का अर्थ ग्रहण करे । घ्राणेन्द्रिय अर्थावग्रह-जो नासिका के द्वारा गध का अर्थ ग्रहण करे। ___ रसनेन्द्रिय अर्थावग्रह-जो जिह्वा के द्वारा रस का अर्थ ग्रहण करे। स्पर्शेन्द्रिय अर्थावग्रह-जो शरीर के द्वारा स्पर्श का अर्थ ग्रहण करे। नोइन्द्रिय अर्थावग्रह-जो मन द्वारा हरेक पदार्थ का अर्थ ग्रहण करे । व्यजनावग्रह के चार भेद और अर्था० के ६ भेद एव दोनो मिल कर अव० के दश भेद हवे । अव० के द्वारा सामान्य रीति से अर्थ का ग्रहण होवे परन्तु जाने नही कि यह किस का शब्द व गन्ध प्रमुख है। बाद मे वहाँ से इहा मतिज्ञान मे प्रवेश करे। इहा जो विचारे कि यह अमुक का शब्द व गन्ध प्रमुख है परन्तु निश्चय नही होवे पश्चात् अवाय मति ज्ञान मे प्रवेश करे। अवाय जिससे यह निश्चय हो कि यह अमुक का ही शब्द व गन्ध :है पश्चात् धारणा मति ज्ञान मे प्रवेश करे । धारणा जो धार राखे कि अमुक शब्द व गन्ध इस प्रकार का था। एवं इहा के ६ भेद-श्रोत्रेन्द्रिय इहा, यावत् नो इन्द्रिय इहा । एव अवाय के ६ भेद श्रोत्रेन्द्रिय, यावत् नोइन्द्रिय अवाय। एव धारणा के ६ भेद श्रोत्रेन्द्रिय धारणा यावत् नो इन्द्रिय धारणा। इनका काल कहते है-अव० का काल एक समय से असंख्यात
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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