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________________ पाच ज्ञान का विवेचन २२१ देता है । तब शिष्य शङ्का उत्पन्न होने पर पूछता है, 'हे स्वामिन् ! उस पुरुष ने हु कारा दिया तो क्या उसने एक समय के, दो समय के, तीन समय के, चार समय के यावत् सख्यात समय के या असख्यात समय के प्रवेश किये हुए शब्द पुद्गल ग्रहण किये है ?" गुरु ने जवाब दिया-- एक समय के नहीं, दो समय के नही, तीन-चार यावत् सख्यात समय के नहीं, परन्तु असख्यात समय के प्रवेश किये हुए शब्द पुद्गल ग्रहण किये है। इस प्रकार गुरु के कहने पर भी शिष्य के समझ मे नही आया। इस पर मल्लक (सरावला) का दूसरा दृष्टान्त कहते है :कुम्हार के नीभाडे में से अभी का निकला हुआ कोरा सरावला हो और उसमें एक जल बिन्दु डाले, परन्तु वह जल बिन्दु दिखाई नही देवे । इस प्रकार दो, तीन, चार यावत् अनेक जल बिन्दु डालने पर जब तक वह भीजे नही, वहा तक वह जल बिन्दु दिखाई नही देवे, परन्तु भीजने के बाद वह जल बिन्दु सरावले मे ठहर जाता है । ऐसा करते करते वह सरावला प्रथम पाव, आधा करते करते पूर्ण भर जाता है और पश्चात् जल बिन्दु के गिरने से सरावले मे से पानी निदालने लग जाता है, वैसे ही कान मे एक समय का प्रवेश किया हुआ पुद्गल ग्रहण नही हो सके, जैसे एक जल बिन्दु सरावले मे दिखाई नही देवे, वैसे ही दो, तीन, चार सख्यात समय के पुद्गल ग्रहण नही हो सके, अर्थ को पकड सके, समझ सके इसमे असख्यात समय चाहिये और वह असख्यात समय के प्रवेश किये हुए पुद्गल जब कान मे जावे और (सरावले मे जल के समान) उभरने (बाहर) निकलने) लगे तब "हूँ" इस प्रकार बोल सके, परन्तु समझ नही सके, इसे व्यञ्जना० कहते है। ___ अर्थावग्रह के ६ भेद : २ श्रोनेन्द्रिय अर्थाव०, २ चक्षुइन्द्रिय अर्थाव०, ३ घाणेन्द्रिय
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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