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________________ .२२६ ' जैनागम स्तोक सग्रह (१) असंज्ञी कालिकोपदेश श्रुत-जो सुने, परन्तु विचारे नहीं। सज्ञी के जो ६ बोल होते है वो असंज्ञी के नही । (२) असंज्ञी हेतूपदेश श्रुत-जो सुनकर धारण नही करे। (३) असंज्ञी दृष्टिवादोपदेश-क्षयोपशम भाव से जो नही सुने एवं ये तीन बोल असज्ञी आश्री कहे अर्थात् असंज्ञी श्रुत-जो भावार्थ रहित, विचार तथा उपयोग शून्य पूर्वक आलोचना रहित, निर्णय रहित, ओघ संज्ञा से पढ़े तथा पढ़ावे व सुने उसे असज्ञीश्रु त कहते है ५ सम्यक् श्रु त-अरिहन्त, तीर्थकर, केवल ज्ञानी, केवल दर्शनी, द्वादश गुण सहित, अट्ठारह दोष रहित, चौतीश अतिशय प्रमुख अनन्त गुण के धारक, इनसे प्ररूपित बारह अंग अर्थ रूप आगम तथा गणधर परुषो से गुफित श्रुत रूप (मूल रूप ) बारह आगम तथा चौदह पूर्वधारी जो श्रु त तथा अर्थरूप वाणी का प्रकाश किया है वह सम्यक् श्रु त दश पूर्व से न्यून ज्ञान धारी द्वारा प्रकाशित किये हुए आगम समश्र त व मिथ्या श्रुत होते है। (६) मिथ्या श्रुत-पूर्वोक्तगुण रहित, रागद्वष सहित पुरुषो के द्वारा स्वमति अनुसार कल्पना करके मिथ्यात्व दृष्टि से रचे हुवे ग्रन्थ -जैसे महाभारत, रामायण, वैद्यक, ज्योतिष तथा २६ जाति के पाप शास्त्र प्रमुख-मिथ्याश्रु त कहलाते है। ये मिथ्याश्रु त मिथ्या दृष्टि को मिथ्या श्रुत पने परिणमे ( सत्य मानकर पढ़े इसलिये ) परन्तु जो सम्यक श्रत का सम्पर्क होने से झूठे जानकर छोड़ देवे तो सम्यक् श्रत पने परिणमे इस मिथ्याश्र त सम्यक्त्ववान पुरुष को सम्यक् बुद्धि से वांचते हुवे सम्यक्त्व रस से परिणमे तो बुद्धि का प्रभाव जानकर आचारांगादिक सम्यक शास्त्र भी सम्यक्त्व वान् पुरुष को सम्यक् होकर परिणमते है और मिथ्या दृष्टि पुरुष को वे ही शास्त्र मिथ्या पने परिणमते है। ७ सादिक श्र त ८ अनादिक श्रुत ६ सपर्यवसित श्रुत १० अपर्यवसित श्रुत-इन चार प्रकार के श्रुत का भावार्थ साथ
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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