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________________ जैनागम स्तोक संग्रह २६ भेद वारणव्यतर के, ज्योतिपी देव के १० भेद-५ चर ज्योतिपी और ५ अचर (स्थिर) ज्योतिषी । तीन किल्विषी, १२ देव लोक, ६ लोकान्तिक, ६ ग्रेवेयक (ग्रीवेक) ५ अनुत्तर विमान । इन ६६ (१०+१५+१६+१०+१०+३+१२+६+६+५) जाति के देवो का अपर्याप्ता व पर्याप्ता एव देवता के १६८ भेद जानना । ___ एवं सव मिलाकर ५६३ भेद जीव तत्व के जानना इन जीवो को जानकर इनकी दया पालनी चाहिए, जिससे इस भव मे व परभव में परम सुख की प्राप्ति हो। २ : अजीव तत्व के लक्षण तथा भेद अजीव तत्व :__जो जड लक्षण, चैतन्य रहित, वर्णादिक रूप सहित तथा ज्ञान रहित, सुख दु.ख को नही वेदने वाला हो, उसे अजीव तत्व कहते है । अजीव के ५४ भेद . १ धर्मास्तिकाय का स्कध, २ उसका देश, ३ उसका प्रदेश, ४ अधर्मास्तिकाय का स्कध, ५ देश, ६ प्रदेश, ७ आकाशास्तिकाय का स्कंध, ८ देश, ६ प्रदेश, १० काल, ये १० भेद अरूपी अजीव के, १ पुद्गलास्तिकाय का स्कंध, २ देश, ३ प्रदेश । तीन तो ये और चौथा परमाणु पुद्गल एवं चार भेद रूपी अजीव के मिलाकर अजीव के कुल १४ भेद हुए। विस्तार नय से अजीव के ५६० भेद:३० भेद अरूपी अजीव के : १ धर्मास्तिकाय, द्रव्य से एक, २ क्षेत्र से लोक प्रमाण, ३ काल से आदि अंत रहित, ४ भाव से अरूपी, ५ गुण से चलन सहाय । ६ अधर्मास्तिकाय द्रव्य से एक ७ क्षेत्र से लोक प्रमाण,
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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