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________________ २१६ जैनागम स्तोक संग्रह कि जिसके साथ गुरु आदि को बोलना योग्य, स्वयं बोले व गुरु आदि बाद में बोले तो-अशा० । (१३) रात्रि को गुरु आदि पूछे कि 'अहो आर्य ! कौन निद्रा में है और कौन जाग्रत है ?' ऐसा सुनकर भी इसका उत्तर नही देवे तो अशा० । (१४) अशनादि वहेर कर लावे तव प्रथम अन्य शिष्यादि के आगे कहे और गुरु आदि को बाद में कहे तो अशा० । (१५) अशनादि लाकर प्रथम अन्य शिष्यादि को बतावे और बाद में गुरु को बतावे तो अशा० । (१६) अशनादि लाकर प्रथम अन्य शिष्यादि को निमन्त्रण करे और बाद मे गुरु कोकरे तो अशा० । (१७) गुरु आदि के साथ अथवा अन्य साधु के साथ अन्नादि वेहर कर लावे और गुरु व वृद्ध आदि को पूछे बिना जिस पर अपना प्रेम है, उसे थोड़ा थोड़ा देवे तो अशा० । (१८) गुरु आदि के साथ आहार करते समय अच्छे २ पत्र, शाक, रस, सहित मनोज्ञ भोजन जल्दी से करे तो 'अशा० । (१९) बडों के बुलाने पर सुनते हुए भी चुप रहे तो अशा० । (२०) बडो के बुलाने पर अपने आसन पर बैठा हुआ 'हा' कहे, परन्तु काम क्या कहेगे इस भय से बड़ो के पास जावे नही तो अशा० । (२१) बडों के बुलाने पर आवे और आकर कहे कि 'क्या कहते हो' इस प्रकार बडों के साथ अविनय से बोले तो अशातना । (२२) बड़े कहे कि यह काम करो तुम्हे लाभ होगा। तब शिष्य कहे कि आप ही करो, आपको लाभ होगा तो अशातना। (२३ शिष्य बडो को कठोर, कर्कश भाषा बोले तो अशातना। (२४) शिष्य गुरु आदि बड़ों से जिस प्रकार बड़े बोले वैसे ही शब्दो से वार्तालाप करे तो अशातना । (२५) गुरु आदि धार्मिक व्याख्यान बांचते हो उस समय सभा मे जाकर कहे कि 'आप जो कहते है वह कहां लिखा है ।" इस प्रकार कहे तो अशा० । (२६) गुरु आदि व्याख्यान देते हो उस समय उन्हे कहे कि आप बिलकुल भूल गये हो तो अशा० । (२७) गुरु आदि व्याख्यान देते हो, उस समय शिष्य ठीक २ नही समझने पर खुश न रहे तो अशा० । (२८) बड़े व्याख्यान
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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