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________________ तेतीस बोल २१५ बावीस परिषह सहन करने का सग्रह करना, १० सरल निर्मल (पवित्र) स्वभाव रखने का संग्रह करना, ११ सत्य संयम रखने का संग्रह करना, १२ समकित निर्मल रखने का संग्रह करना, १३ समाधि से रहने का संग्रह करना, १४ पांच आचार पालने का संग्रह करना, १५ विनय करने का संग्रह करना, १८ शरीर को स्थिर रखने का संग्रह करना, १६ सुविधिअच्छे अनुष्ठान का संग्रह करना, २० आश्रव रोकने का संग्रह करना, २१ आत्मा के दोष टालने का सग्रह करना, २२ सर्व विषयो से विमुख रहने का संग्रह करना, २३ प्रत्याख्यान करने का संग्रह करना, २४ द्रव्य से उपाधि त्याग, भाव से गर्वादिक का त्याग करने का संग्रह करना, २५ अप्रमादी होने का संग्रह करना २६ समय समय पर क्रिया करने का संग्रह करना, २७ धर्मध्यान का संग्रह करना, २८ सवर योग का संग्रह करना, २६ मरण आतङ्क (रोग) उत्पन्न होने पर मन में क्षोभ न करने का संग्रह करना, ३० स्वजनादि का त्याग करने का संग्रह करना, ३१ प्रायश्चित जो लिया हो उसे करने का सग्रह करना, ३२ आराधिक पति की मृत्यु होवे इसकी आराधना करने का संग्रह करना । ३३ तेतीस प्रकार की अशातना : ( १ ( शिष्य गुरु आदि के आगे अविनय से चले तो अशातना (२) शिष्य गुरु आदि के बराबर चले तो अशातना (३) शिष्य गुरु आदि के पीछे अविनय से चले तो अशातना (४) (५) (६) इस प्रकार गुरु आदि के आगे, बराबर, पीछे अविनय से खड़ा रहे तो अशातना (७) (4) ( ९ ) इस तरह गुरु आदि के आगे, बराबर, पीछे अविनय से बैठे तो अशातना (१०) शिष्य गुरु आदि के साथ बाहिर भूमि जावे और उनके पहले ही शुचि निवृत्त होकर आगे आवे तो अशा० । (११) गुरु आदि के साथ विहार भूमि जाकर व वहाँ से आकर इरियापथिका पहले ही प्रतिक्रमे तो अशा० । ( १२ ) किसी पुरुष के साथ
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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