________________
२१४
जैनागम स्तोक संग्रह ३१ प्रकृति नीचे लिखे अनुसार :
१-ज्ञानावरणीय कर्म की पाँच प्रकृति-१ मतिज्ञानावरणीय, २ श्रु तज्ञानावरणीय, ३ अवधिज्ञानावरणीय, ४ मन पर्यय ज्ञानावरणीय, ५ केवलज्ञानावरणीय ।
२-दर्शनावरणीय कर्म की नव प्रकृति- १ निद्रा, २ निद्रा निद्रा, ३ प्रचला, ४ प्रचला प्रचला, ५ थीणाद्धि (स्त्यानद्धि), ६ चक्षुदर्शनावरणीय, ७ अचक्षुदर्शनावरणीय, ८ अवधि दर्शनावरणीय, ६ केवलदर्शनावरणीय।
३-वेदनीय कर्म की दो प्रकृति-१ साता वेदनीय २ असाता वेदनीय ।
४-मोहनीय कर्म की दो प्रकृति-१ दर्शनमोहनीय २ चारित्र मोहनीय।
५-आयुष्य कर्म की चार प्रकृति-१ नरक आयुष्य २ तिर्यच आयुष्य ३ मनुष्य आयुष्य ४ देव आयुष्य ।
६-नाम कर्म की दो प्रकृति-१ शुभ नाम २ अशुभ नाम । ७-गोत्र कर्म की दो प्रकृति-१ ऊँच गोत्र २ नीच गोत्र।
८-अन्तराय कर्म की पांच प्रकृति-१ दानान्तराय २ लाभान्तराय ३ भोगान्तराय ४ उपभोगान्तराय ५ वीर्यान्तराय ।
३२ बत्तीस प्रकार का योग संग्रह : १ जो कोई पाप लगा होवे उसका प्रायाश्चित लेने का संग्रह करना, २ जो कोई प्रायाश्चित ले उसको दूसरे के प्रति नही करने का संग्रह करना, ३ विपत्ति आने पर धर्म के अन्दर दृढ रहने का संग्रह करना, ४ निश्रा रहित तप करने का संग्रह करना, ५ सूत्रार्थ ग्रहण करने का संग्रह करना, ६ सुश्र षा टालने का संग्रह करना. ७ अज्ञात कुल की गौचरी करने का संग्रह करना, ८ निर्लोभी होने का संग्रह करना,