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________________ ६ भाव १६३ अनन्तानुबंधी के चार, औदारिक का मिश्र १, वैक्रिय का मिश्र १, आहारक के २ कार्मण का १, मिथ्यात्व ५, एवं १४ छोडना ) चौथे गुरग० ४६ हेतु (४३ तो ऊपर के और औदारिक का मिश्र १, वैक्रिय का मिश्र १, कार्मण काययोग एव ( ४३ + ३ = ४६) पांचवे गु० ४० हेतु (४६ के ऊपर के उसमे से अप्रत्याख्यानी की चोकडी, त्रस काय का अव्रत और कार्मण काय योग ये ६ घटाना शेष (४६ - ६=४० हेतु) छठे गु० २७ हेतु (४० मे से प्रत्याख्यानी की चोकड़ी पाच स्थावर का अव्रत, पाच इन्द्रिय का अव्रत और १ मन का अव्रत एवं १५ घटाना शेष २५ रहे और २ आहारक के एव २७ हेतु) सातवे गु० २४ हेतु (२७ मे से - औदारिक मिश्र, वैक्रिय मिश्र, आहारक मिश्र ये तीन घटाना शेष २४ हेतु) आठवे गु० २२ हेतु (२४ में से वैक्रिय और आहारक के २ घटाना) नववे गु० १६ हेतु (२२ मे से हास्य, रति, अरति, भय, शोक, दुर्गंछा ये ६ घटाना) दशवे गु० १० हेतु & योग और १ संज्वलन का लोभ एवं १० हेतु । ग्यारहवे, बारहवे गु० ε हेतु ( १ योग के ) तेरहवे गु० ७ हेतु ( सात योग के ) चौदहवे गु० हेतु नही । २ दण्डक द्वार पहले गुण० २४ दण्डक, दूसरे गुण० १६ दण्डक, (५ स्थावर के छोडकर) तीसरे, चौथे, गुरग० १६ दण्डक (१६ मे से ३ विकलेन्द्रिय के घटाना, पाचवे गुण० २ दण्डक-सज्ञी तिर्यच और सज्ञी मनुष्य छठे से चौदहवे गुण० तक १ मनुष्य का दण्डक 1 ३ जीव-योनि द्वार पहले गुण ० ८४ लाख जीवा योनि, दूसरे गुण० २२ लाख, ( एकेन्द्रिय की ५२ लाख छोड़कर) तीसरे चौथे गुण० २६ लाख जीवा १३
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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