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________________ जैनागम स्तोक संग्रह १९२ मोहनीय, ४ आयुष्य, २ नाम, २ गोत्र, ५ अन्तराय एवं ३७ प्रकृति का क्षय करे उसे क्षायक भाव कहते है ये ९ बोल पावे | 2 १ क्षायक समकित २ क्षायक यथाख्या चारित्र ३ केवल ज्ञान ४ केवल दर्शन और क्षायक दानादि पांच लब्धि एव बोल । ४. क्षयोपशम भाव में ३० वोल. (प्रथम) ४ ज्ञान, ३ अज्ञान, ३ दर्शन, ३ दृष्टि, ४ चारित्र १ ( प्रथम ) चरित्ताचरित (श्रावकपना पावे) १ आचार्यगणि की पदवी, १ चौदह पूर्व ज्ञान की प्राप्ति, ५ इन्द्रिय लब्धि, ५ दानादि लब्धि एवं सर्व ३० बोल | ५. पारिणामिक भाव के दो भेद : १ सादिपारिणामिक २ अनादि परिणामिक । सादि नष्ट होवे अनादि नही । सादि परिणामिक के अनेक भेद है— पुरानी सुरा (मदिरा) पुराना गुड, तदुल आदि ७३ बोल होते है शाख भगवती सूत्र की । अनादि परिणामिक के १० भेद :- १ धर्मास्तिकाय २ अधर्मास्ति काय ३ आकाशास्ति काय ४ पुद्गलास्ति काय ६ काल ७ लोक ८ अलोक भव्य १० अभव्य एवं १० । ६. सन्निवाई भाव के २६ भांगे . १० द्विक सयोगी के १० त्रिक सयोगी के, ५ चोक संयोगी के, १ पंच संयोगी का एव २६ भागे विस्तार श्री अनुयोग द्वार सिद्धान्त से जानना देखो पृष्ठ १६०, १६१. १६२ । १४ गुणस्थान पर १० क्षेपक द्वार हेतु द्वार २५ कपाय, १५ योग एवं ४० और ६ काय, ५ इन्द्रिय, १ मन एवं १२ अव्रत (४०+१२=५२), ५ मिथ्यात्व एवं सर्व ५७ हेतु । पहेले गुणस्थाने ५५ हेतु (आहारक के २ छोड़कर) दूसरे गुणस्थाने ५० हेतु ( ५५ में से ५ मिथ्यात्व के छोडना ) तीसरे गु० ४३ हेतु (५3 में से ----
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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