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________________ १६४ जैनागम स्तोग्य संग्रह योनि द्वार, पांचवे गुण० १८ लाख जीवायोनि, छठे से चौदहवें गुण० १४ लाख जीवा योनि । ४ अन्तर द्वार पहले गुरण० जघन्य अन्तर्मुहूर्त उ० ६६ सागरोपम झाझेरी अथवा १३२ सागर झाझेरी, ये ६६ सागर चौथे गुण० रह कर पुन: चौथे गुण० ६६ सागर रह कर मिथ्यात्व गुण आवे । दूसरे गुण से ग्यारहवे गुण तक जघन्य अन्तर्मुहूर्त अथवा पल्य के असख्यातवे भाग (इतने काल के बिना उपशम श्रेणी करके गिरे नही) उत्कृष्ट अर्द्ध पुद्गल में देश न्यून, बारहवे, तेरहवे गुण० अन्तर नही पड़े। ५ ध्यान द्वार पहले, दूसरे, तीसरे, गुण० २ ध्यान (पहला) चौथे, पांचवे गुण० २ ध्यान, छठे गुण० २ ध्यान १ आर्त ध्यान २ धर्म ध्यान । सातवे गुण० १ धर्म ध्यान, आठवे से चौदहवे गुण० तक १ शुक्ल ध्यान । ६ फरसना द्वार __ पहले गुण० १४ राज लोक फरसे, (स्पर्श) दूसरे गुण. नीचले पंडग बन से छठ्ठी नरक तक फरसे तथा ऊंचा अधोगाम की विजय से नवग्नेयवेक तक फरसे, तीसरे गुण० लोक के असंख्यातवे भाग फरसे । चौथा गुण० अधोगाम की विजय से बारहवे देवलोक तक फरसे अथवा पंडग वन से छ? नरक तक फरसे, पांचवाँ गुण० इसी प्रकार अधोगाम की विजय से बारहवे देवलोक तक फरसे । छ? से ग्यारहवे गुण० तक अधोगाम की विजय से ५ अनुत्तर विमान तक फरसे । बारहवां गुण० लोक का असख्यातवां भाग फरसे । तेरहवां गुण० सर्व लोक फरसे । चौदहवां गुण. लोक का असंख्यातवां भाग फरसे।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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