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जैनागम स्तोक संग्रह
तत्व, ५ आश्रव तत्व, ६ संवर तत्व,
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४ पाप ७ निर्जरा' तत्व, ८ बंध" तत्व, ६ मोक्ष" तत्व ।
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१ : जीव तत्त्व के लक्षण तथा भेद
जीव तत्व :
जो चैतन्य लक्षण सदा उपयोगी, असंख्यात प्रदेशी, सुख दुख का वोधक, सुख दुःख का वेदक एव अरूपी हो उसे जीवतत्त्व कहते है । जीव का एक भेद है, कारण सव जीवो का चैतन्य लक्षण एक ही प्रकार का है । इसलिए सग्रह नयसे जीव एक प्रकार का होता है | जीव के दो भेद :--
१ त्रस, २ स्थावर, अथवा १ सिद्ध २ संसारो ।
जीव के तीन भेद :
१ स्त्री वेद, २ पुरुष वेद, ३ नपुंसक वेद अथवा १ भव्य सिद्धिया, २ अभव्य सिद्धिया ३ नोभव्य सिद्धिया, नोअभव्य सिद्धिया ।
६ जो जीव को अपवित्र बनाता है, नीची स्थिति मे डालता है । दुःख की प्रतिकूल सामग्री मिलाता है वह पाप है ।
७ जीव के साथ कर्मो का सयोग होना - जड ( अजीव ) वस्तु का मेल होना आश्रव है ।
जीव के साथ कर्मो का सयोग रुक जाना-जड से मेल नही होना संवर है ।
& जीव के साथ अनादि काल से जड पदार्थ (कर्म) मिला हुआ है, उस जड पदार्थ - कर्म का थोड़ा-थोड़ा दूर होना निर्जरा है ।
१० जीव के साथ जड़ वस्तु कर्म का सयोग होने के बाद दोनों का दूध पानी के समान एकमेक हो जाना वन्ध है ।
११ जीव का कर्मों से अलग हो जाना पूरा-पूरा छुटकारा होना मोक्ष है ।