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________________ t नव तत्त्व जीवाजीवे पुण्णं, पावासव-संवरो निज्जरणा य । बंधो मुक्खो य तहा नव तत्ता हुंति णायव्वा ॥ = विवेकी समदृष्टि' जीवो को नव तत्व जानना आवश्यक है | नव तत्वो के नाम : जीव तत्व, २ अजीव तत्व, ३ पुण्य तत्व, १ जीवादि तत्त्वो मे सशय रहित एव शुद्ध मान्यता वाला तथा अनध्यसाय वृद्धि वाले को समदृष्टि कहते है । २ तत्त्व - सार पदार्थ को तत्त्व कहते है, जैसे दूध मे सार पदार्थ मलाई है । आत्मा का स्वभाव जानपना है, परन्तु मोक्ष जाने मे जीवादि नव पदार्थ का यथार्थ जानपना होना ही तत्त्व है । ३ जिस वस्तु मे जानने को देखने की शक्ति होवे वह जीव है । यह अरूपी ( आकाररहित ) है और सदा काल जीता है | ४ जो वस्तु ज्ञान रहित है वह अजीव है, अजीव रूपी - ( आकार वाला) तथा अरूपी दोनो प्रकार का है । ५ जो आत्मा को ( जीव को ) पवित्र बनाता है, ऊँची स्थिति पर लाता है, सुख की सामग्री मिलाता है, वह पुण्य है ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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