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________________ १६० जैनागम स्तोक संग्रह १० सूक्ष्म संपराय जीव स्थानक का लक्षण :-जहां थोड़ा सा संज्वलन का लोभ का उदय है वह सूक्ष्मसंपराय जीव स्थानक कहलाता है। ११ उपशान्त मोह जीव स्थानक का लक्षण :-जिसने मोहनीय कर्म की २८ प्रकृतियां उपशमाई है, उसे उपशान्त मोहनीय जीव स्थानक कहते है। १२ क्षीण मोहनीय जीव स्थानक का लक्षण :-जिसने मोहनीय कर्म की २८ प्रकृति का क्षय किया है, उसे क्षीण मोहनीय जीव स्थानक कहते है। __ १३ सयोगी केवली जीव स्थानक का लक्षण :-जो मन, वचन व काया के शुभ योग सहित केवलज्ञान केवलदर्शन में प्रवर्त रहा है, उसे सयोगी केवली जीव स्थानक कहते है। १४ अयोगी केवली जीव स्थानक का लक्षण :-जो शरीर सहित मन, वचन व काया के योग रोक कर केवलज्ञान केवल दर्शन में प्रवर्त रहा है, उसे अयोगी केवली जीव स्थानक कहते है । ३ स्थिति द्वार १ मिथ्यात्व जीव स्थानक की स्थिति तीन तरह को :( १ ) अनादि अपर्यवसित :-जिस मिथ्यात्व की आदि नही और अन्त भी नही, ऐसा अभव्य जीवो का मिथ्यात्व जानना। (२) अनादि सपर्यवसित .-जिस मिथ्यात्व की आदि नहीं, परन्तु अन्त है ऐसा भव्य जीवो का मिथ्यात्व जानना । (३) सादि सपर्यवसित :-जिस मिथ्यात्व की आदि है और अन्त भी है । अनादि काल से जीव को यह मिथ्यात्व लगा है, परन्तु किसी समय भव्य जीव समकित की प्राप्ति करता है व संसार परिभ्रमण योग कर्म के प्राबल्य से फिर समकित से गिर कर
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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