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________________ दश द्वार के जीव स्थानक १५६ ४ अवती समदृष्टि जीव स्थानक का लक्षण :-जो शङ्का काक्षा रहित होकर वीतराग के वचनो पर शुद्ध भाव से श्रद्धान करे तथा प्रतीति लाकर रोचे, चोरी प्रमुख विरुद्ध आचरण आचरे नही-इसलिये कि उसकी लोक मे हिलना होवे नही व व्यवहार मे समकित __रहे । शाख सूत्र उत्तराध्ययन के २८ वे मोक्ष मार्ग के अध्ययन से। ५ देशव्रती जीव स्थानक का लक्षण :~जो यथातथ्य समकित सहित, विज्ञान विवेक सहित, देश पूर्वक ब्रत अङ्गीकार करे, जो जघन्य एक नमोकारशी प्रत्याख्यान तथा एक जीव की घात करने का प्रत्याख्यान उत्कृष्ट श्रावक की ११ प्रतिमा आदरे उसे देशवती जीव स्थानक कहते है। शाख सूत्र भगवती शतक सतरहवा उद्देशा दूसरा। ६ प्रमत्त सयति जोव स्थानक का लक्षण :-जो समकित सहित सर्व व्रत आदरे, जो (अप्रमत्त जीव स्थानक के सज्वलन के चार कषाय है उनसे ) प्र, अर्थात् विशेष मत्त कहता माता ( मस्त ) होवे सज्वलन का क्रोध मान माया लोभ उसे प्रमत्त सयति जीव स्थानक कहते है, परन्तु प्रमादी नही कहते है। ७ अप्रमत्त सयति जीव स्थानक का लक्षण :-जो अ, कहता नही, प्र, कहता विशेष, मत्त, कहता माता सज्वलन का क्रोध मान माया लोभ एव छठे जीव स्थानक से जो कुछ पतला होवे उसे अप्रमत्त सयति जीव स्थानक कहते है । ___८ निवर्ती बादर जीव स्थानक का लक्षण :-जो निवर्ती कहता निवर्ता ( दूर, अलग ) है सज्वलन का क्रोध तथा मान से उसे निवर्ती बादर जीव स्थानक कहते है। अनिवर्ती बादर जीव स्थानक का लक्षण :-जो अनिवर्ती कहता नही, निवर्ती संज्वलन के लोभ से उसे अनिवर्ती बादर जीव स्थानक कहते है।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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