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________________ १५८ जैनागम स्तोक संग्रह मिथ्यात्व के चार भेद :(१) एक मूल से ही वीतराग के वचनों पर श्रद्धान नही करे ३६३ पाखण्डी समान शाख (साक्षी) सूयगडांग (सूत्रकृतांग)। (२) एक कुछ श्रद्धान करे कुछ नही करे-जमाली-सूत्र के प्रमुख सात निन्हवो के समान । साक्षी सूत्र उववाई तथा ठाणाग के सातवे ठाणे की। (३) एक आगा पीछा कम ज्यादा श्रद्वान करे उदक-पेढाल वत् ( समान ) शाख सूत्र सूयगडांग स्कन्ध २ अध्ययन ७ । (४) एक ज्ञान अन्तरादिक तेरह बोल के अन्दर शङ्का-कला वेदे १ ज्ञानान्तर, २ दर्शनान्तर, ३ चारित्रान्तर, ४ लिङ्गान्तर, ५ प्रवचनान्तर, ६ प्रावचनान्तर, ७ कल्पान्तर, ८ मार्गान्तर, ६ मतान्तर, १० भङ्गान्तर, ११ नयान्तर, १२ नियमान्तर, १३ प्रमाणान्तर एवं १६ अन्तर । शाख सूत्र भगवती शतक पहला उद्देशा तीसरा। २ सास्वादान समदृष्टि जीवस्थानक का लक्षण :-जो समकित छोडता २ अन्त मे स्पर्श मात्र रह जावे, बेइन्द्रियादिक को अपर्याप्त होते समय होवे व पर्याप्त होने के बाद मिट जावे सज्ञी पचेन्द्रिय को पर्याप्त होने के बाद भी होवे उसे सास्वादान समदृष्टि कहते हैं। शाख सूत्र जीवाभिगम दण्डक के अधिकार से।। __३ मिश्रदृष्टि जीव स्थानक का लक्षण :-जो मिथ्यात्व में से निकला । परन्तु जिसने समकित प्राप्त की नही इस बीच मे अध्यवसाय के रस से प्रवर्तता हुआ आयुष्य कर्म बांधे नही, काल भी करे नही, वहा से थोड़े समय के अन्दर अनिश्चयता से तीसरे जीव स्थानक से गिर कर पहले जीव स्थानक आवे अथवा वहा से चौथे आदि जीव स्थानक पर जावे तव आयुष्य बांधे काल भी करे । शाख सूत्र भगवती शतक ३० वे अथवा २६ वे।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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