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________________ दश द्वार के जीव स्थानक १६१ मिथ्यात्व को अंगीकार करता है। ऐसे भव्य जीवों को समदृष्टि पडिवाई कहते है । इस मिथ्यात्व जीव स्थानक की स्थिति जघन्य अन्तर्मु हुर्त उत्कृष्ट अर्द्ध पुद्गल परावर्तन मे देश न्यून । ऐसे जीव निश्चय से समकित पाकर मोक्ष जाते है । शाख सूत्र जीवाभिगम दण्डक के अधिकार से। २-३ दूसरे व तीसरे जीव स्थानक की स्थिति जघन्य एक समय की उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की। चौथे जीव स्थानक की स्थिति :-जघन्य अन्तर्महूर्त की उत्कृष्ट ____६६ सागरोपम झाझेरी। पाँचवे जीव स्थानक की स्थिति :-जघन्य अन्तर्मुहूर्त की उत्कृष्ट करोड़ पूर्व मे देश न्यून । ? जीव स्थानक की स्थिति :-परिणाम आश्री जघन्य एक * समय उत्कृष्ट करोड़ पूर्व मे देश न्यून। प्रवर्तन आश्री जघन्य अन्तर्मुहर्त की उत्कृष्ट करोड पूर्व मे देश - न्यून । धर्म देव आश्री, शाख सूत्र भगवती शतक १२ उद्देशा है । सातवे, आठवे, नववे, दसवे, ग्यारवे जीव स्थानक की जघन्य एक समय की उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की। शाख सूत्र भगवती शतक , पच्चीसवां। बारहवे जीव स्थानक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की उत्कृष्ट :: अन्तर्मुहूर्त की। तेरहवें जीव स्थानक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की उत्कृष्ट - करोड पूर्व देश न्यून । चौदहवे जीवे स्थानक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट पा, अन्तर्मुहूर्त की। वह अन्तर्मुहूर्त कैसा?
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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