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गतागति द्वार
गाथा 'बारस'चउवीसाइ संतर एगसमय ५ कत्तीय । ६उवट्टण परभव आउयं, च अठेव आगरिसा।।
पहला बारह द्वार नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य, देव इन चार गतियो में उत्पन्न होने का, चवने का अन्तर पडे तो जघन्य एक समय उत्कृष्ट बाहर मुहूर्त का अन्तर पड़े। सिद्ध गति में अन्तर पड़े तो जघन्य एक समय, उत्कृष्ट छः मास का । चवने का अन्तर नही पड़े।
दूसरा चउवीस द्वार (१) पहली नरक में अन्तर पड़े तो जघन्य एक समय, उत्कृष्ट चौवीस मुहूर्त का।
(२)दूसरी नरक में अन्तर पड़े तो जघन्य एक समय उत्कृष्ट सात दिन का।
(३) तीसरी नरक में जघन्य एक समय उत्कृष्ट पन्द्रह दिन का। (४) चौथी नरक में
,,एक माह का (५) पांचवी , ,
दो , , (६) छठी , ,
चार, " (७) सातवी,, ,
, ,छः " ," १३४