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________________ आठ कर्म की प्रकृति ४ रूप अमद ५ तप अमद ६ सूत्र अमद ७ लाभ अमद ८ ऐश्वर्य अमद । नीच गोत्र आठ प्रकारे बाधे -१ जाति मद २ कुल मद ३ बल मद ४ रूप मद ५ तप मद ६ सूत्र मद ७ लाभ मद ८ ऐश्वर्य मद । गोत्र कर्म सोलह प्रकारे भोगवेः- ॐच गोत्र आठ प्रकारे भोगवे और नीच गोत्र आठ प्रकारे भोगवे । उक्त नाम कर्म की सोलह प्रकृति के सामान ही सोलह प्रकारे भोगवे। ____ गोत्र कर्म की स्थिति. जघन्य आठ मुहूर्त की, उत्कृष्ट बीस करोड़ाकरोड सागरोपम की, अबाधा काल दो हजार वर्ष का। ८ अन्तराय कर्म का विस्तार अन्तराय कर्म की पांच प्रकृति:-१ दानान्तराय २ लाभान्तराय ३ भोगान्तराय ४ उपभोगान्तराय ५ वीर्यान्तराय । अन्तराय कर्म पांच प्रकारे बांधे-ऊपर सामान । अन्तराय कर्म पाच प्रकारे भोगवे-ऊपर सामान । अन्तराय कर्म की स्थिति--जघन्य अन्तर मुहूर्त की, उत्कृष्ट तीस करोडाकरोड़ सागरोपम की, अवाधा काल तीन हजार वर्ष का।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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