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________________ आठ कर्म की प्रकृति आठ कर्मों के नाम: ९ ज्ञानावरणीय २ दर्शना वरणीय ३ वेदनीय ४ मोहनीय ५ आयुष्य ६ नाम ७ गोत्र ८ अन्तराय | कर्म के लक्षण १ ज्ञानावरणीय कर्म . सूर्य को ढाकने वाले बादल के समान । २ दर्शनावरणीय कर्म . राजा के समीप पहुंचाने में जैसे द्वारपाल है उसके (द्वारपाल ) समान । ३ वेदनीय कर्म : साता वेदनीय मधु लगी हुई तलवार की धार के समान-जिसे चाटने से तो मीठी मालूम होवे परन्तु जीभ कट जावे । असातावेदनीय अफीम लगी हुई खड्ग समान । ४ मोहनीय कर्म दोरू (शराब) समान । ५ आयुष्य कर्म : राजा की बेडी समान जो समय हुवे बिना छूट नही सके । ६ नाम कर्म : चीतारा (पेन्टर ) समान जो विविध प्रकार के रूप बनाता है । ७ गोत्र कर्म . - कुम्भकार के चक्र समान जो मिट्टी के पिडको घुमाता है । १२१
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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