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________________ १२२ जैनागम स्तोक संग्रह ८ अन्तराय कर्म :---सर्व शक्ति रूप लक्ष्मी को रखता है जैसे राजा का भंडारी भडार (खजाना) को रखता है। आठ कर्म की प्रकृति तथा आठ कर्मो का बन्ध कितने प्रकार से होता है व कितने प्रकार से वे भोगे जाते है, तथा आठ कर्मों की स्थिति आदि : १ ज्ञानावरणीय कर्म ज्ञानावरणीय कर्म की पाँच प्रकृति : १ मतिज्ञानावरणीय २ श्रुतज्ञानावरणीय ३ अवधिज्ञानावरणीय ४ मन पर्यय ज्ञानावरणीय ५. केवलज्ञानावरणीय। ज्ञानावरणीय कर्म छः प्रकारे बाँधे १ नाणप्पडिरिणयाए-ज्ञान तथा ज्ञानो का अवर्णवाद बोले तो ज्ञानावरणीय कर्म बांधे २ नाणनिन्हवणियाए-जान देने वाले के नाम को छिपावे तो ज्ञानावरणीय कर्म बांधे २ नाणअन्तरायेणंज्ञान प्राप्त करने में अन्तराय (वाधा) डाले तो ज्ञानावरणीय कर्म वांधे ४ नाणपउसेणं ज्ञान तथा ज्ञानी पर द्वेष करे तो ज्ञानावरणीय कर्म बांधे ५ नाण आसायणाए-ज्ञान तथा जानी की असातना (तिरस्कार, निरादर) करे तो ज्ञानावरणीय कर्म बाँधे ६ विसपायरणा जोगेणं-ज्ञानी के साथ खोटा (झठा) विवाद करे तो ज्ञानावरणीय कर्म बाँधे। ज्ञानावरणीय कर्म १० प्रकारे भोगे १ श्रोत आवरण २ श्रोत विज्ञान आवरण ३ नेत्र आवरण ४ नेत्र विज्ञान आवरण ५ घ्राण आवरण ६ घ्राण विज्ञान आवरण ७ रस आवरण ८ रस विज्ञान आवरण ६ स्पर्श आवरण १० स्पर्श विज्ञान आवरण।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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