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________________ चौबोस दण्डक ११७ ४ सस्थान :-युगलियो मे सस्थान एक-१ समचतुरस्र सस्थान । ५ कषाय :-युगलियो में कषाय चार । ६ संज्ञा :-युगलियो मे सज्ञा चार । ७ लेश्या . युगलियो लेश्या चार-कृष्ण, नील, कापोत, तेजस् । ८ इन्द्रिय .-युगलियों मे इन्द्रिय पाँच । ६ समुदघात -युगलियो में समुद्घात तीन १ वेदनीय २ कषाय ३ मारणातिक । १० संज्ञी :-युगलिया सज्ञी। ११ वेद ·-युगलियो मे वेद दो १ स्त्री वेद, २ पुरुष वेद १२ पर्याप्ति .-युगलियो मे पर्याप्ति ६, अपर्याप्ति ६ । १३ दृष्टि -युगलियो' पाँच देव कुरु, पाँच उत्तर कुरु मे दृष्टि दो-१ सम्यग् दृष्टि २ मिथ्यात्व दृष्टि । पाँच हरिवास पॉच रम्यक वास, पॉच हेमवय, पाँच हिरण्य वय-इन वीस अकर्मभूमि मे व छप्पन अन्तरद्वीप मे दृष्टि १ मिथ्यात्व दृष्टि । १४ दर्शन - इनमे दर्शन दो १ चक्षु दर्शन २ अचक्ष दर्शन । १५ ज्ञान :-'पाच देव कुरु, पाच उत्तर कुरु में दो ज्ञानमति ज्ञान और श्रु त ज्ञान और २ अज्ञान-मतिअज्ञान और श्रुत अज्ञान, शेप बीस अकर्म भूमि व छप्पन्न अन्तर द्वीप मे दो अज्ञान १ मति अज्ञान और २ श्रु त अज्ञान । १. ३० अकर्मभूमि मे २ दृष्टि २ ज्ञान तथा २ अज्ञान होते है और ५६ अन्तरद्वीप मे ही १ मिथ्यात्व दृष्टि व २ अज्ञान होते है ऐसा कई ग्र थो मे वर्णन आता है।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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