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________________ जैनागम स्तोक संग्रह १६ उत्पत्ति द्वार मनुष्य संमूच्छिम में आठ दण्डक का आवे १ पृथ्वी काय २ अप काय ३ वनस्पति काय ४ बेइन्द्रिय ५ त्रीन्द्रिय ६ चौरिन्द्रिय ७ मनुष्य ८ तिर्यच पचे। २० स्थिति द्वार : इनकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरमुहूर्त की। २१ मरण द्वार : मरण दो प्रकार का समोहिया, असमोहिया । २२ च्यवन द्वार ये दश दण्डक में जावे-पांच एके तीन विकले. मनुष्य, तिर्यच । २३ आगति द्वार इनमें दो गति का आवे-मनुष्य, तिर्य च । २४ गति द्वार दो गति में जावे-मनुष्य और तिर्य च । युगलिया का दण्डक १ शरीर द्वार :-युगलियों में शरीर तीन-१ औदारिक २ तैजस् ३ कार्मरण। २ अवगाहना द्वार :-हेमवय, हिरण्य वय में ज० अंगुल के असख्यातवे भाग उ० एक गाउ की, हरिवास, रम्यक वास मे ज० अगुल के असंख्यातवे भाग उ० दो गाउ की, देवकुरु, उत्तरकुरु में ज० अगुल के असख्यातवे भाग उ० तीन गाउ की, छप्पन्न अन्तर द्वीप में आठ सो धनुष्य की। ३ सघयण :-युगलियो मे संघयण एक १ वज्रऋषभनाराच संघयण ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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