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________________ चौबीस दण्डक ४ सस्थान .- , सस्थान एक हुण्डक ५ कषाय :- , कषाय चार ६ सज्ञा :-सज्ञा चार ७ लेश्या :-,, लेश्या तीन कृष्ण, नील, कापोत ८ इन्द्रिय , :-, इन्द्रिय पाच ६ समुद्घात , .-इनमें समुद्घात तीन-वेदनीय, कषाय, मारणातिक। १० संज्ञी , :-ये असज्ञी हैं । ११ वेद , .-इनमे वेद एक-नपुंसक १२ पर्याप्ति , .-, पर्याप्ति चार, अपर्याप्ति पांच १३ दृष्टि , :-,, दृष्टि एक १ मिथ्यात्व दृष्टि १४ दर्शन , :-, दर्शन दो-चक्षु और अचक्षु दर्शन १५ ज्ञान .. .-,, ज्ञान नही, अज्ञान दो मति और श्रु त अज्ञान । १६ योग द्वार .-इन योग तीन १ औदारिक शरीर काय योग २ औदारिक मिश्र शरीर काय योग ३कार्मण शरीर काय योग । १७ उपयोग द्वार : उपयोग चार-१ मति अज्ञान उपयोग २ श्रु त अज्ञान उपयोग . ३ चक्षु दर्शन उपयोग ४ अचक्षु दर्शन उपयोग। १८ आहार द्वार: आहार दो प्रकार का-ओजस, रोम० वे-सचित, अचित, मिश्र तीनो ही तरह का लेते है।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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