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________________ जैनागम स्तोक संग्रह छठे देवलोक से नव ग्रेवेयक (ग्रेवेयक) तक १ शुक्ल लेश्या। पांच अनुत्तर विमान में-१ परम शुक्ल लेश्या ८ इन्द्रिय द्वार : नरक में पांच व देवलोक में पांच । ६ समुद्घात द्वार : नरक मे चार समुद्घात १ वेदनीय २ कषाय ३ मारणान्तिक ४ वैक्रिय। देवताओ में पांच-१ वेदनीय २ कषाय ३ मारणान्तिक ४ वैक्रिय ५ तेजस् । ____ भवनपति से बारहवे देवलोक तक पांच समुद्घात ; नव ग्रं यवेक से पाच अनुत्तर विमान तक तीन समुद्घात १ वेदनीय २ कषाय ३ मारणान्तिक । १० सज्ञो द्वार :-- पहली नरक मे सज्ञी व 'असज्ञी और शेष नारको में संज्ञी। भवन पति, वाणव्यन्तर में-संजी, असंज्ञी। ज्योतिपी से अनुत्तर विमान तक सज्ञी। ११ वेद द्वार : नरक में नपुषक वेद, भवन पति, वाण व्यन्तर, ज्योतिषी तथा पहले दूसरे देवलोक मे १ स्त्री वेद २ पुरुष वेद शेप देवलोक में १ पुरुप वेद। १ असज्ञी तिर्यञ्च मर कर इस गति मे उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्ता दशा मे असशी है । पर्याप्ता होने के बाद अवधि तथा विभग ज्ञान उत्पन्न होता है। इस अपेक्षा से समझना चाहिए। Pamu...
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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