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________________ चौबीस दण्डक ६५ नव अवेयक तथा पाच अनुत्तर विमान के देव उत्तर वैक्रिय नहीं करते। ३ सघयण द्वार - नरक के नैरयिक असघयनी । देव असघयनी । ४ सस्थान द्वार : नरक मे हुण्डक सस्थान व देवलोक के देवो का समचतुःरस्रः सस्थान । ५ कषाय द्वार: नरक मे चार कषाय व देवलोक मे भी चार । ६ संज्ञा द्वार - नारकी मे सज्ञा चार, देवलोक मे सज्ञा चार । ७ लेश्या द्वार:नारकी मे लेश्या तीन :पहली दूसरी नरक में कापोत लेश्या । तीसरी नरक में कापोत व नील लेश्या । चौथी नरक मे नील लेश्या। पाचवी नरक मे कृष्ण व नील लेश्या । छठ्ठी नरक मे कृष्ण लेश्या । सातवी नरक मे महाकृष्ण लेश्या । भवनपति व वारणव्यन्तर मे चार लेश्या १ कृष्ण २ नील ३ कापोत. ४ तेजस् । ज्योतिषी, पहला व दूसरा देवलोक में-१ तेजस् लेश्या। तीसरे, चौथे व पांचवे देवलोक मे–१ पद्म लेश्या ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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