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________________ जैनागम स्तोक संग्रह १ भवन पति के देव व देवियों की अवगाहना, जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग उत्कृष्ट सात हाथ की । ૨૪ २ वाणव्यन्तर के देव व देवियो की अवगाहना जघन्य अंगुल के असख्यातवे भाग, उत्कृष्ट सात हाथ की । ३ ज्योतिषी देव व देवियों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असं - ख्यातवे भाग उत्कृष्ट सात हाथ की । ८ वैमानिक की अवगाहना नीचे लिखे अनुसार - पहले तथा दूसरे देवलोक के देव व देवियों की जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग, उत्कृष्ट सात हाथ की । तीसरे, चौथे देवलोक के देव की जघन्य अगुल के असंख्यातवे भाग; उत्कृष्ट छ हाथ की । पाँचवे छट्ठ े देवलोक के देवों की जघन्य अगुल के असंख्यातवे भाग, उत्कृष्ट पाच हाथ को सातवे, आठवे देवलोक के देवो की जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट चार हाथ को , नववे दसवे ग्यारहवे व वारहवे देवलोक के देवो की जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग, उत्कृष्ट तीन हाथ की | नव ग्रैवैक ( ग्रीयवेक) के देवो की जघन्य अगुल के असंख्यातवे भाग, उत्कृष्ट दो हाथ की । चार अनुत्तर विमान के देवो की ज० अगुल के असंख्यातवे भाग, उ० एक हाथ की । पाँचवें अनुत्तर विमान के देवो की ज० अंगुल के असंख्यातवें भाग, उ० मुड (एक मूठ कम) हाथ की । भवनपति से लगाकर बारह देवलोक पर्यन्त उत्तर वैक्रिय करे तो ज० अंगुल के संख्यातवे भाग उत्कृष्ट लक्ष योजन की ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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