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________________ चौबीस दण्डक १२ पर्याप्ति द्वार : -- (भाषा, व मन दोनो एक साथ बांधते है ) नरक में पर्याप्ति पाच और अपर्याप्ति पांच, देवलोक मे पर्याप्ति पांच और अपर्याप्त पांच | १३ दृष्टि द्वार : नरक मे दृष्टि तीन, भवनपति से बारहवे देवलोक तक दृष्टि तीन, नव वयेक मे दृष्टि दो ( मिश्र दृष्टि छोड़कर) पाच अनुत्तर विमान मे दृष्टि १ सम्यग् दृष्टि । १४ दर्शन द्वार नरक मे दर्शन तीन - १ चक्षु दर्शन २ अचक्षु दर्शन ३ अवधि दर्शन | - ६७ देवलोक मे दर्शन तीन - १ चक्षु दर्शन २ अचक्षु दर्शन ३ अवधि - दर्शन | १५ ज्ञान द्वार : -- नरक में तीन ज्ञान और तीन अज्ञान । भवनपति से नव ग्रैवेयक तक तीन ज्ञान व तीन अज्ञान । पाच अनुत्तर विमान में केवल तीन ज्ञान, अज्ञान नही । १६ योग द्वार - नरक मे तथा देवलोक में ग्यारह योग – १ सत्य मनयोग २ असत्य मनयोग ३ मिश्र मनयोग ४ व्यवहार मनयोग ५ सत्य वचन योग ६ असत्य वचन योग ७ मिश्र वचन योग व्यवहार वचन योग & वैक्रिय शरीर काय योग १० वैक्रिय मिश्र शरीर काय योग ११ कार्मण शरीर काय योग ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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