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________________ प्रसङ्ग तेरहवां प्राय देखकर सब रोने लगे। तब उसने कहा-हाय ! हाय ! पाण्डव जीते हैं और मैं मर गया । अगर उन्हें मरे देख लेता तो मेरे प्राण, खुशीसे निकल जाते। ऐसे सुनते ही अश्वत्थामा आदिने रातको अचानक हमला करके धृष्टद्य म्न एवं शिखण्डीको मारा तथा द्रौपदीके पांचों पुत्रों के सिर काटकर अपने स्वामीके आगे लाकर रक्खे । बच्चोंके सिर देखकर दुर्योधनने कहा-अरे मूर्यो । इन बच्चोंको मारनेसे क्या है ? मेरे दुश्मन पाँचों पाण्डव तो जीवित ही हैं । हाय ! हाय ! मेरी तकदीर ऐसी कहाँ ! जो मै ___ उन्हें मरे देखू, ऐसे दुनिमें मरकर पापी सप्तम नरकमे गया।' सात और तीन बचे ' .. अठारह दिनके युद्ध में अठारह अक्षौहिणी सेना कटी। कहा जाता है कि पाण्डवपक्षके सात वचे श्रीकृष्ण, सात्यकि एवं पांचों पाण्डव तथा कौरव-पक्षीय तीन बचे-अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा । देखो एक दुष्ट दुर्योधनने सारे कुलका संहार कर दिया, इसीलिए तो कहा जाता है कि कुमाणस आया मला न जाया भला खैर ! जो कुछ होना था वह हो गया, किन्तु कहा यही गया कि पाण्डवोंकी जीत हुई और कौरवोंकी हार। - राज्याभिषेक और देशनिकाला श्रीकृष्णसहित विजयी-पाण्डव हस्तिनापुर आए । पिताजीके चरणोंमें सिर झुकाया। शुभ मुहूर्तमें धर्मपुत्रका पुनः राज्याभिषेक हुआ और वे सानन्द राज्य करने लगे। द्रौपदीका रुप सुनकर एकदा पद्मनाम राजाने देवता द्वारा उसे मंगवा पा
SR No.010340
Book TitleJain Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanrajmuni
PublisherChunnilal Bhomraj Bothra
Publication Year1962
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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