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जैन-जीवन
धर्मपुत्र अयामा मृतः नरो वा कु जरो वा ऐसे असत्य बोला । पुत्र-पथ सुनकर द्रोणने शस्त्र फेंक दिए और मौका पाकर शीघ्र ही वृष्टद्युम्नने उन्हें मारकर बापका वैर ले लिया । सोलहवें दिन कर्णके सेनापतित्वमें दुःशासनको भीमने मारा । क्रोधारुण-कर्ण सत्रहवें दिन राजा शल्यको सारथी बना कर अर्जुनको मारने दौड़ा, किन्तु उसका रथ जमीनमें घुस गया । ज्योंही उसे वह निकालने लगा, अर्जुनने फौरन उसका सिर काट लिया । अठा रहवें दिन शल्यके सेनापतित्वमें दुर्योधन आदि लड़ने आए । धर्मपुत्रने शल्यको सहदेवने गत खेलानेवाले पापी - शकुनि को व मीमने दुर्योधनके अनेक माइयोंको मौत के घाट उतार दिया। इस प्रकार अपनी सेनाका संहार देखकर दुर्योधन भाग कर एक तालाय में घुस गया ।
भीम और दुर्योधनका गदायुद्ध
पाएटव फौरन वहां पहुंचे और कुलवाती दुर्योधनको बाहर निकाल कर युद्धके लिए ललकारा। उसने भीमके साथ गदायुद्ध करना चाहा। दोनों वीर मिड़े और गदाएँ बिजलीकी तरह चमाने लगीं । यासिर कृष्णके संकेनसे भीमने जंघा पर TET मारकर करaratशको गिरा दिया। फिर भी क्रोध शान्त न होनेसे उसके सिरमें लातें मारने लगा । यह अनुचित कार्य होने गए श्रतः पाप्महत
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मनाने गए एवं युद्ध भी गल हो गया। वर होनेके बाद दुर्योधन सेनामें लाया गया और उसको मृत
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देवर पल
श्री