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प्रसङ्ग नौवां गुफामें ज्ञानके चाबुक
कालेनागके साथ सैनना मुश्किल है, मेरुपर्वतको हाथ पर उठाना कठिन है, समुद्रको भुजासे पार करना दुष्कर है, किन्तु न सभी कार्योंसे काम विकारको जीतना कहीं लाखों-करोड़ों गुना दुष्करतम है | बडे-बड़े ऋषि-मुनि इसके आगे हार गये हैं, भ्रष्ट होगये हैं तथा श्रपना सर्वस्न खो बैठे हैं । लाख-लाख धन्यवाद तो उनको है, जिन्होंने स्वय तो कामको जीता सो जीता ही, लेकिन महामती राठी की तरह दूसरों को भी ज्ञानके चाबुक मारकर रास्ते पर ला दिया ।
राजीमती और रथनेमि
राजीमती महाराज उनकी पुत्री थी और भगवान् श्ररिष्टनेनिके साथ उसका विवाह निश्चित हुआ था, किन्तु भावीवश उसे बीच ही में छोड़कर प्रभु संयमी बन गये। पीछेसे उनके छोटे भाग्य राजीमती विवाहकी प्रार्थनाकी । सतीने कहा- देवर प्रभुकी छोटी हूँ, अतः वमन के समान हूँ । क्या यमनको पौवा कोई मला आदमी साता है ? रथनेमिको वैराग्य होगा और वे साधु बनकर घोरतपस्या करने लगे । निरनारकी तरफ
भगवान अरिष्टनेमिको केवलज्ञान होने के बाद उधर राजी aata मी बीच एवं यद साथियों में मुख्या वनी । एक दिन यह