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________________ जैन जीवन दी गई। प्रभुकी बरात महाराज प्रसेनकी सुपुत्री रानीमती (जिसके साथ पिछले पाठ जन्मोंफा प्रेम था) से नेमिकुमारका सम्बन्ध किया गया और कृष्ण-चलमद्र आदि यादवनरेश एक विशाल वरात लेकर बढी धूमधामसे उनका विवाह करने के लिए चले। इधर महाराज उग्रसेनने भी विवाहके शुभअवसर पर बड़ी जबरदस्त तैयारियों की। वरातियोंके मोजनार्थ अनेक पशु-पक्षी तथा नाना प्रकारकी अन्य भोजनसामग्री एकत्रित की । इधर राजकुमारी राजीमती अनेक मखियोंके माय रंगमएडपमे अपने भावीपति भगवान थरिष्टनेमिकी प्रतीक्षा करती हई स्वकीय सामाग्यकी सराहना करने लगी। परिवर्तन राजकुमारनेमि ज्यों ही विवाहमण्डपके पास पाए त्यों ही उन्होंने श्रावन्दन करते हुए अनेक पशुपतियोंको देना । सारथिसे . उनका कारण पृथा, तब उसने कहा-आपके विवाहमें एन सबका । मोजन होगा। यह सुनकर पामिन्यु भगवानने मोचा, गरि मेरे मागरमा गोमा या होगालोमा विवाद मेरे लिए श्रेयस्कर नहीं Eri I से विचार कर उसी समय वापस लौट चले।नी गामा पासवाना, गम्नमें उनका नाम सभी दया है। दया
SR No.010340
Book TitleJain Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanrajmuni
PublisherChunnilal Bhomraj Bothra
Publication Year1962
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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