________________
प्रसङ्ग चौथा
हाथीसे उतरो
जो काम लोहेका तीर नहीं कर सकता, वह काम वचनका तीर कर सकता है। शीर्षकमे लिखे हुए हाथीसे उतरो इस वाक्यने क्या ही कमाल कर दिया। एक अकडे हुए महामुनिको झुका दिया और सर्वज्ञ मगवान् वना दिया। क्या आप जानते हैं कि वे महामुनि श्रीबाहुबलि थे और वचनका तीर मारनेवाली महासतिया ब्राह्मी-सुन्दरी थीं।
सुन्दरीकी तपस्या भगवान् ऋषमदेवको केवलज्ञान होते ही ब्राह्मी-सुन्दरी दीक्षा लेने लगीं, किन्तु भरतराजाने अतिसुन्दरताके कारण सुन्दर को आज्ञा नहीं दी एवं उससे विवाह करना चाहा। सुन्दरीने विवाह करने से साफ इनकार कर दिया। फिर भी मरत नहीं माने और उसे अपने महलोंमे रखकर स्वयं दिग्विजयाथ चले गये। भरतक्षेत्र की विजय प्राप्त करने मे उन्हें साठ हजार वर्षे लगे। पीछेसे सुन्दरीने प्रायविलकी तपस्या शुरू कर दी। घोर तपस्या के कारण उसका शरीर विल्कुल निस्तेज-सौन्दर्यहीन एवं क्षीण होगया। चक्रवर्ती भरत जब वापस आए तो उन्होंने वहाँ मात्र अस्थि-पिंजर देवा । बस, देखते ही उनका विकार शान्त हो गया और सुन्दरीको दीक्षाकी अनुमति दे दी एवं वह साध्वी वनकर आत्मसाधना करने लगी।