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जैन जीवन
विधार से नीन दरड चलाए लेकिन अब समय के बाद उनका भी उन पन हो गया और लहाई-मागदे बन ही बढ गये 1 उम समय नाभि नामक मान कुन्न कर की पत्नी मरुदेवी की कुति से भगवान् ऋपम ने जन्म लिया । वह समय श्रमभूमि मनुष्यों को कर्मभूमि घनाने की कोशिश कर रहा था व युगलधर्म को बदल रहा था।
परिवर्तन अब से पहले किमी का विवाह नहीं होता था, किन्तु भगवान प्रापम का दो कन्याओं से पाणिग्रहण हया।
प्रागे कोई राजा नहीं होता था. परन्तु ऋापम का रायामिषेक किया गया और वे 'प्रादिनरेश कला |
युगलों के समय मात्र एक जाडा (पुत्र-पुत्री) उत्पन्न होना था लेकिन नापमदेव के मरत-बावलि आदि १०८ पुत्र तथा बाली और सुन्दरी से दो पुत्रिया ।
युगलोका कोई वश नहीं होता था, परन्तु बाल्यावस्था में प्रभु को अनु विगेपप्रिय होने से उनका इन्याकुवंश कहलाया। आगे चल कर उनी का नाम मूर्गवंश एव रघुवंश हो गया। श्री राम-लक्ष्मण भी मी वंश मे हुए थे।
भगवान ऋषभदेव ने तिरासी लाग्य पूर्व तक अयोध्या नगरी में गत किया चं जगत् में राजनीति और मंमारनीति का प्रचार
लोगों का भोलापन उम उमाने के आदमी बहुत भोले-भाले थे और उनमें ज्ञान की की कमी भी बल्लन चीग होने से घामाविक अनाज उत्पन्न
भानवरा मोल यादमी उसे पशुयों की तरह चर गये यत सारे
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