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प्रसङ्ग छन्ataai
श्रभीचकुमारका क्रोध
बन्धुओं ! परम्परागत रूढ़िके अनुसार यद्यपि आप लोग सबसे खमत खामना करते हैं, किन्तु ध्यान देकर देखिए कि जिनके साथ अनवन है, बोल-चाल बन्द है या कोर्ट में मामला चल रहा है, उनसे क्षमा माँगकर मनको शुद्ध बनाते हैं या नहीं ? यदि नहीं, तो आपके खमत - खामने मात्र दौग हैं ? क्या आप नही जानते कि एक उदायनेसे मनमें द्वेष रखकर अभीचकुमार डूब गया और वैमानिकदेवता बननेके बदले असुरयोनिमे उत्पन्न हो गया ? श्रमीचकुमार महाराज उदायनका पुत्र था । भगवान् महावीरका परम भक्त था एव बारहव्रतधारी श्रावक था, किन्तु महाराजने योग्य होने पर भी अपना राज्य उसको न देकर केशीकुमार मानजेको दे दिया । इससे उसको बहुत दुख हुआ और राजा संयम लेते ही अपने शहरको लोडकर चम्पानगरी चला गया। वहां राजा कुणिक जो इसकी मौसीका पुत्र था, उसके पास रहकर दुःखमय जीवन बिताने लगा ।
यद्यपि सामायिक - प्रतिक्रमण आदि हररोज करता था, निरतिचार श्रावकत्रत पालता था, हरएकके साथ अच्छे से अच्छा व्यवहार करता था, फिर भी महाराज उदायनके साथ इतना द्वेष था कि उनका नाम आते ही आँखोंसे खून बरसने लग