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रसपट ज्य गछाधिपराजै ॥ पद मन मधुकर जपनननं ॥ सरद शशांक समो मुख सोहै। उदियाचल जिम तपनननं ॥ डालं गगाधिपनो नित लीजै ॥ सरण सदा सुख करण णगणं ॥ हरण कर्म रोषु करण संपदा ॥ थिव ॥ ३ ॥ मदन जिसौ सन मोहनी मुद्रा !! धरा विच जिम धरणगणं ॥ सभा सुधर्मों सकतणी पर कौरत छाई घगागागाणं ॥ डाल गणि सरना नित वाजे जग यश डंका भणगाणणं । पेखी रचना समो सरणनी ॥ पाखंड भाजै भरणगाण ॥ आ. शिव० ॥४॥ तेजुल ड्र समोतप देखो। कुमति लता गडू फननननं ॥ काम क्रोध सदलोम हटाये क्षांति इसी कर धरणगण॥ पुज्य प्रमेश्वर के नित भेटो चरणांवुन दुःख हरनाराणं । पाल्प तर चिंत्या मन पारस आरा ध्यां सुख आन नननं ॥ ी. शिव०१५। सघन पवन बर्षारितु