SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७७ ) रसपट ज्य गछाधिपराजै ॥ पद मन मधुकर जपनननं ॥ सरद शशांक समो मुख सोहै। उदियाचल जिम तपनननं ॥ डालं गगाधिपनो नित लीजै ॥ सरण सदा सुख करण णगणं ॥ हरण कर्म रोषु करण संपदा ॥ थिव ॥ ३ ॥ मदन जिसौ सन मोहनी मुद्रा !! धरा विच जिम धरणगणं ॥ सभा सुधर्मों सकतणी पर कौरत छाई घगागागाणं ॥ डाल गणि सरना नित वाजे जग यश डंका भणगाणणं । पेखी रचना समो सरणनी ॥ पाखंड भाजै भरणगाण ॥ आ. शिव० ॥४॥ तेजुल ड्र समोतप देखो। कुमति लता गडू फननननं ॥ काम क्रोध सदलोम हटाये क्षांति इसी कर धरणगण॥ पुज्य प्रमेश्वर के नित भेटो चरणांवुन दुःख हरनाराणं । पाल्प तर चिंत्या मन पारस आरा ध्यां सुख आन नननं ॥ ी. शिव०१५। सघन पवन बर्षारितु
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy