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________________ ( ७८ " बरषै देशन महा सुख करणणणं ॥ सरश्वति कंठे भरण बिराजै॥, हर्ष लेडू जन मननननं ॥ डाल गणाधिप नोनित शांभल बयन रयन हित करणगाणं ॥ अमृत रुपण अधिक अनोपम ॥ उभय बयण सुख सरणण रणं ॥ आ.शिव० ॥६॥ कोड दीवाली तपो स्वामजी ॥ ए अविलाषा मननननं । सतियां में जेठांजी सोहै। घणी मरजीअति, घननननं। उगौसै साठे गुणगाया सहर बौदासर सरणणणं ॥ माघ मोहोत्सव दिन ए नौको रखो मुनिजर नयनननं । आ. शिव० ॥७॥ इति । ___अथ ढाल३ तीसरौ राग. हम तो गई । थी पनियां भरनकं २॥ मेरा यांहीं रह्यारे॥ ओर्टपै हरि ओलंपै ।। बिछवा यांही रह्या ।। मेरी भोली नंनद मेरौ स्ानी नंनद ॥ टुंटि भाय पाई अयां ढूंढि आय आई ॥. वि
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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