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________________ ( ७६ ) ढालर दुसरी राग० आई ए सावन मास सखोरी पवनवाजता सरणणणं ॥ चड तरफ सुं घटाज उमटी इन्द्र गाजता घननननं ॥ बड़ी रे बुन्द वर्षी रोतु बर्षे बीजली चमके कननननं ॥ पौउर पपइया बोलै भरना कर रह्या भननननं ॥ एदेशी० ॥. मंच मैं अरके प्रगटे भिक्षु मिथ्यातम भ्रम हरणणां ॥ तिमल अनोपम युगल नाण, श्रीजिन आणा शिर धरणणणं ॥ भिक्षु, स्वास तो हृदक्यारी मेरो म्हा सुख करणय ॥ आराध्यां भव जलद उद्धरे शिवपुर सुंदर बरणणणं ॥ १ ॥ दुतिय पाट गुरू माल गणांधिप ॥ नृप इंदु जय सरणणणं ॥ - मघवा गणि मनोहर मुद्रा मांणक जनमन हरणगणं ॥ गणि महाराज तणो नित · कौजे समर्ण' महा सुख करणणणं ॥ हरण जन्म जरा मरण तथा दुःख ॥ शिब ॥ २ ॥ •
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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