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________________ ( ७५ ) घणी क्षमां ॥ ५ ॥ सुंदर कोमल मधुर मनो हर ॥ स्वा० देशना असत रूप ॥ खा. से निसुणे धर चूप ॥ श्वा० ते न पडै भव कूप ॥ खा० ॥ भव सिंधु तारक थाने घणो क्षमा ॥६॥ मुज चित तुज चरणा बस्याहो ॥श्वा॥ षट् पद पुसप सुगन्ध ॥ खा० ॥ ज्यं मोरां धन बुन्द । खा० ॥जेम चकोरा चंद ॥ श्वा० आज मयो आनन्द ॥ श्वा० बंछित सार कथांनै घणी चमां ॥ ७॥ चिंत्यामणी सम नाम तुमारो॥ खा. कल्पतरू रंजीवार ।। पूखा०॥ पाप तणो पाधार ॥ खा. दौज्यो पार उतार ॥ खा. विरद विचारक थाने घणी नमां ॥८॥ संतियां मांहे सखर सिरो मण ॥ खा० जेठाजी यशधार ॥ खा. धणि सुभ दृष्टि उदार ॥ खा. धन्य जेहनो पव तार ॥ बा. पोस दसमी श्रीकार ॥ खा. पार उतारक थानै घणों क्षमा ॥६॥ इतिः ॥
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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