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दधि तारण वहाज । खा०॥ दूल्हापर भवर न भान ॥ श्वा० ॥ पूज प्रमेसर थाने घणी क्षमा ॥१॥ नगर उजेणी सखर सुरंगी.॥ खा. कान्ह कुले उतपन | खा० मात जड़ा वां धन ॥ श्वा० ॥ जेहनोहै पुत्र रत्न ॥ स्वा० घणारे उजागर थानै घणी क्षमा ॥२॥ गुण षट् हसनै षट् दस ओपम ॥ स्वा० ॥ संपद पष्ट सनर ॥ स्वा० ॥ सुर गिर जेम: सधीर ॥ स्वा० ॥ निरमल गंगानौर ॥ स्वा० ।। तेज दिवाकर थानै घणी क्षमा ॥ ३॥ रसि मंडल बिच तखत बिराज्या ॥ खा. सक ज्युराजै तायः खा. पेख छटा बिकसाय । स्वा मनु, मधुकर लोभाय ॥ स्वा० जग, यश धारक यांनै घणी क्षमां ॥४॥ पंचानन माकम कसैहो ॥ स्वा० पाखंड दियारो हटाय ॥ स्वा पुनवंत भेया. पाय ॥ स्वा० रह्यो तुन . भुज छत्र छांय ॥ स्वा० भगत उधारका थाने