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________________ ( ७३) षोडस श्रीपम चोपत सखरि षट् तीस गुणके धार ॥ अष्ट संपदा सोहत सुंदर सोम मुद्रा श्रीकार ॥ सोम मुद्रा श्रीकार गणांधिप सोम मुद्रा श्रीकार ॥ नीधारी० ॥५॥ अन्तरजामी तुम गुन सिन्धु वंछित फलदातार महेर करिने चणीराखो उतारो भवपार । उतारो भवपार गणाधिप उतारो भवपार ॥ जौधारी ॥ ६ ॥ उगणीसै पेंसठ माहा वदि दूज चन्देरो सहर मंकार पाटमहोछवनौ छब अतिभारि हर्षत भवि नरनार ॥ हर्षतभवी नरनार गणाधिप हर्षत भवि नरनार ॥ जीथांरि ॥ ॥ इति ० ॥ महा सतियां श्रीचांदकंवरजी क्वतं ॥ अथश्री डालचंदनी मांहाराजके गुणांकी ढाल पहलौ राग० सोनारो घड़लो रूपारी इढाणी ॥ लालजी० गूजर पाणीडै नाय ॥ लालजी० एदेशी • भिक्षुपंट सप्तम छानताही । खामनी • डालचंद महाराजर। खा० भब
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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