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________________ • [१५] मुजको तोड लिया । नौलाबदन मेरा हो गया। साघु का जहर चढ़ गया। हाय. एदेशी ॥ वांम चर्ण सर्ण तरण ॥ कर्ण भव पार है। एआंकडी॥ भिक्षु पाट सप्तम थाट ॥ गहगाट गंण माट॥ मिथ्याः छोत खोत धोत ॥ पोत इस धार है ॥ खां०॥ १॥ गुण छतीस बुध वतीस॥ तजी रीस विश्वा वीस ॥ नानखांन मोठीवांन॥ जिम क्षीरोदवार है ॥ खां० ॥ २॥ अहो तुज सांति दांति शांति क्रांति कौर ज्य॥ देखत पेखत परमानंद॥ भविक मन मझार है ॥ खां ॥ १.३॥ अध हटार कर्मविडार ॥ संगत सार तात सम ॥ सोहनी सूरत मोहनी मूरत ॥ इहा पूरत मंदार हैं। खां ॥ ४ ॥ गरीब निवाज ताज आज ॥ साज काज दुःख भाज ॥ दीनदयाल - तु होः कृपाल ॥ अरज निहाल सार है। खां० ॥ ५ ॥ शिव
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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