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________________ [१६] वधु बरवा मवदधि तरवा ॥ करवा तन कल्याणको ॥ टुक महर करी भव फेराहरो॥ तुम चरण सरण जगतार हैं। खां० ६ ॥ दौना नाथ साथ आधं ॥ वार२ जोडी हाथ पल २ वंदु पाप निकंदु ॥ भेटत तुमदी दार हैं ॥ ७॥ खांम० ॥ इति टुलीचंदजी . साम सुखा कत पूज्य गुण वर्णन समाप्त ॥ .. अथ ढाल लोख्यते देसी कृसन गुजरी का ख्याल को : दान देजा गुजर चंद्रावली मोय दान देना गुजर चंद्रावलौः दान हमारो देजा गुजरी जब जाणे ९ आगै व्रज भोम चौरासी बन मै दान हमारो लागेः दान देजा इण चाल मांही छै० डालु गणी फुली है गण फुलवारीः गणौ तोरी फुलौ है गण फुलवारी ॥ एआ. श्री भिक्षुक सप्तम पाटे ॥ डालम गणी बनमाली ॥ अहो खामी श्री भिक्षु के सप्त
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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