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(२८) बहु लौल करी ॥ प्रा० ॥ १॥ उगणौँसे नव के गणि जन्म्या । ते वीसै संयम सखरौं । चोपन माघ बंदी दुतिया दिन ।। भिक्षु गर्णिदको तख्त बरी ॥ प्रा० ॥ २॥ बहु सर्व सिद्धान्त बिलोकी। काव्य लोक अरु छन्द पदरी॥ जोन घटी घण जन घट घाली ।। देश बिदेश माह बिचरी ॥ प्रा०॥ विचरतं २ बर्ष पैंसठे ॥ चौमासी कियो हुलस धरौं ॥ चंदेरी में ठाठ लगायो । बरषायों बहु ज्ञान झरी । प्रा० ॥ढूं. चौमासो उतरौयाँ विहार करायो । पिंण कारण कम संक्ति करौ। बिहार कयो नहीं गयो स्वाम जब ॥ दुसर चौमासी कियो फेरी ॥ प्रो० ॥ ॥ ५ ॥ शरीर निपट गयो छोज दिनोदिन॥ अन्नको रुच पण कमती परौं । सूर बौर साहसीक पणे प्रभु ॥ काचा संचित कर्म बरी || मा०।। च्चार तीर्थनै बहु विध